आत्माओं की आत्मा:
बाबा नंद सिंह जी महाराज

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Father had envisioned Mahan Babaji as the indwelling soul of all and derived a spiritual pleasure in serving the Sangat, wiping their shoes with his white flowing beard, feeding, and serving the poor and afflicted. Because he envisioned and beheld his beloved Lord in everyone of them, he experienced unmatched spiritual joy and satisfaction in this humble service.

बाबा जी के देहावसान का समाचार सुन कर लाखों श्रद्धालु उन के अन्तिम दर्शन करने के लिए उमड़ पड़े। पिता जी ने मोगा से बसों व ट्रकों के काफिले का प्रबन्ध किया हुआ था। ये सभी गाड़ियाँ संगतों से खचा-खच भरी हुई थीं। यह सारा काफिला दरिया के उस स्थान की ओर प्रस्थान कर रहा था, जहाँ पूज्य बाबा जी की पवित्र देह को जल में प्रवाहित करना था। एक बहुत बुजुर्ग श्रद्धालु संगत से भरे ट्रक के पीछे लटक कर जा रहा था। पिता जी ने विनम्र प्रार्थना की कि वह नीचे उतर जाए, कहीं ऐसा न हो कि वह चलते ट्रक से गिर जाए।

बाबा जी का दैहिक प्रस्थान सहन करना पिता जी के लिए बहुत ही कठिन था। घर वापस आकर वे श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के कमरें में जाकर बच्चों की तरह बिलखने लगे। इस बिछुड़ने की वेदना में रोते हुए उन्हों ने एक अजीब दृश्य देखा। बाबा नंद सिंह जी महाराज उस बुजुर्ग आदमी में रूपान्तरित हो गए, जिस को पिता जी ने संगत से भरे हुए ट्रक से नीचे उतर जाने की प्रार्थना की थी। इस दृश्य को देखने के बाद पिता जी ने शेष रात्रि बहुत व्याकुलता से काटी और अगली प्रातः शीघ्र ही उस स्थान की ओर चल पड़े। उन्होंने उस क्षेत्रा के कुछ परिचित व उत्तरदायी व्यक्तियों से मिलकर काफी खोजबीन के उपरान्त उस बुजुर्ग को ढूँढ लिया। उन्होंने संगतों की उपस्थिति में विनम्रतापूर्वक अपना शीश उस बुजुर्ग के चरणों में रख कर अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की थी।

इस प्रकार बाबा नंद सिंह जी महाराज ने पिता जी को उस अपूर्व ज्ञान का अनुभव करवाया था कि एक देवसत्ता ही सभी चीजों व सारी सृष्टि में पैफली हुई है। इस दिन उन्होंने बहुत कृपा कर के अपने प्रिय अनुयायी को दर्शन दे कर तृप्त किया था। यह प्रभु को हर स्थान व हर समय उपस्थित होने को समझने का वरदान किया था।

सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है
गोबिंद बिनु नही कोईं।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 485 सभै घट राम बोलै रामा बोलै॥
राम बिना को बोलै रै॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 988 सत्य व समदृष्टि एक है, परम सत्य सारे ब्रह्मण्ड में समाहित है, प्रभु के सच्चे भक्त की दृष्टि सार्वभौम हो जाती है, उसमें एकात्म भाव की सृष्टि होती है। भक्त नामदेव जी ने प्रभु को हर वस्तु में विद्यमान पाया। उसने अपने शब्दों में सर्वव्यापी प्रभु की महिमा का गायन किया है। सैद्धान्तिक रूप में तो इससे हर एक परिचित हो सकता है लेकिन इस समदृष्टि का वरदान वास्तव में किसी-किसी को प्राप्त होता हैै। जिसको होता है, वह किसी के हृदय को दुःखी नही करता तथा सभी को प्रभु-प्रेम का दान देता है, वह सम्पूर्ण विश्व से जुड़ जाता है। पिता जी ने बाबा जी की आत्मा को सब की आत्मा के आवास के रूप में देखा था। संगत की सेवा करने से उनको प्रसन्नता की अनुभूति होती थी। वे अपनी सफेद दाढ़ी से संगतों के जूतों को झाड़ते थे। लंगर बाँटते तथा दीन दुखियों की सेवा करते थे। उनको सब में बाबा नंद सिंह जी महाराज ही दिखाई देते थे। सेवा करके उनको अथाह प्रसन्नता व संतुष्टि का अनुभव होता था। कहीं बाबा जी की आत्मा को आघात न पहुँचे इसलिए वे किसी के मन को नहीं दुखाते तथा न ही किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाते थे। उनकी दृष्टि समदृष्टि थी। उन्होंने सभी को एक दृष्टि से देखा था। वह प्रत्येक को बराबर नम्रता व श्रद्धा भावना से प्रेम करते थे। इस समदृष्टि की अवस्था में जिज्ञासु सारी सृष्टि को प्रेम करता हैं। एक बार उन्होंने कहा था:
‘सच्चा संत किसी को बददुआएँ किस प्रकार दे सकता हैं, क्योंकि उसको सब में प्रभु के दर्शन होते हैं। वह तो बुरा-भला कहने वाले का भी भला करते हैं। यह रूहानी प्रेमियों की सच्ची महिमा है।’
बाबा नरिन्द्र सिंह जी

भाई कन्हैया जी तथा भाई नंदलाल जी को सब में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के दर्शन होते थे, उनकी दृष्टि महान थी। इस दृष्टि मेंं जात-पात, रंग-रूप, नस्ल, धर्म व कौम के सभी भेद समाप्त हो चुके थे।

एक बार चालीसा करते समय बाबा जी ने उनको दर्शन दे कर अपने ‘स्वयं आप’ के दर्शन करवाए थे। पिता जी इस ‘स्वयं’ के दर्शनों से प्रकाशमान हो गए थे। यह परम आनंद, रूहानी प्रसन्नता व खुशी का शिखर था। इनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। यह प्रभु-निवास व उसकी कृपा के निवास की यात्रा थी। चालीसा पूरा हो गया। पिता जी बाहर घूमने के लिए निकल गए। बाबा जी ने कृपा की तथा उनके ‘स्वयं’ के उस बाहरी रूप के दर्शन करवाए, जो पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी के साथ रहता है। प्राणी में यह ‘दैवी आप’ है-

सभ महि जोति जोति है सोइ॥
तिस के चानणि सभ महि चानणु होइ॥

इन दर्शनों द्वारा बाबा जी ने उनको सर्वव्यापी प्रभु की रूहानी लीला व महानता का अहसास करवाया था। उनको हर स्थान व हर प्राणी में परमात्मा के ही दर्शन होते थे। उनको यह अनुभव सदैव ही होता रहा है।