खुदाई और सफ़ाई का मेल ‘ख़ुदाई ते सफ़ाई दा मेल है’

-बाबा नंद सिंह जी महाराज

Humbly request you to share with all you know on the planet!

खुदाई और सफ़ाई का मेल है इसलिए परमात्मा की पावन सेवा, पूजा, स्तुति में बरती जाने वाली हर वस्तु की पवित्रता और शुद्धता जरूरी है। अपने शरीर और निजी वस्त्रों, भेंट योग्य सभी पदार्थों, पूजा की वस्तुओं और पूजा के स्थान की स्वच्छता और शुद्धता जरूरी है।

अपने अशुद्ध शरीर और अपवित्र मन से हमें कितनी घृणा महसूस होती हैं तो अति पावन परमात्मा की अपवित्र सेवा, अस्वच्छ चढ़ावा और दूषित पूजा करते समय हम स्वयं को कितना दुःखी महसूस करेंगे।

परमात्मा ने हमें असंख्य पदार्थ दिए हैं। परमात्मा को भेंट की जाने वाली प्रत्येक वस्तु हमारी नहीं, बल्कि उसी द्वारा प्रदान की गई है। इसलिए किसी भी वस्तु पर ना तो हमारा अधिकार है और ना ही परमात्मा को इन वस्तुओं में से किसी एक की भी जरूरत है।

तो फिर वह कौन सी वस्तु या पदार्थ है जिसे अपना मानकर हम सतगुरु को अर्पित करें। जिसकी उसे जरूरत है, जो उसे प्रसन्न कर सके। परमात्मा केवल एक ही दुर्लभ पदार्थ के लिए लालायित रहते है और वह है विशुद्ध प्रेम। इसलिए परमात्मा के प्रति हमारा व्यवहार प्रेमपूर्ण होना चाहिए। उसकी सेवा करें तो प्रेम से, पूजा अर्चना करें तो प्रेम से, स्तुति करें तो प्रेम से। उसके दर्शन करें तो भी प्रेम भाव से करें- बिना किसी इच्छा और स्वार्थ के। हमें जितनी जरूरत परमात्मा की है उससे कहीं अधिक लालसा उसे हमारे शुद्ध, निःस्वार्थ और निर्मल प्रेम की है।

इसलिए हमें सतगुरु की सेवा और पूजा अति उत्तम तरीके से करनी चाहिए और सांसारिक वस्तुओं के प्रति ‘‘मैं और मेरा’’ भाव से मुक्त होने का प्रयत्न करना चाहिए। ऐसे समर्पण से ही हम गुरु के और गुरु हमारे हो जाते हैं।

सब कुछ परमात्मा के वश में है, पर परमात्मा प्रेम के वश में हैं।

परमात्मा ही हमारा दाता है। वह सभी जीवों को आहार देता है, पर उसका अपना आहार तो ‘प्रेम’ है। भगवान राम श्रद्धालु भीलनी के झूठे बेरों का स्वाद लेते हैं। भगवान कृष्ण दुर्योधन के महलों के बढ़िया व स्वादिष्ट भोजन को ठुकराकर गरीब विदुर के कुटीर में सादे (घी मसालों से रहित) साग का आनन्द लेते हैं। श्री गुरु नानक साहिब मलिक भागो के शाही भोजन को त्याग कर भाई लालो के कोधरे (क्षुद्र अन्न) की रोटी बहुत ही प्रेम से खाते हैं। परमात्मा को पदार्थों की भूख नहीं, सचमुच में वह तो केवल प्रेम का ही भूखा है।

पवित्रता के सागर अति पावन सतगुरु के लिए एक अशुद्ध और मलिन मन न तो प्रसाद तैयार कर सकता है और न ही उसे भेंट कर सकता है।