महान् आध्यात्मिक ज्योति

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बाबा हरनाम सिंह जी महाराज सदा ही अँधेरे कमरे में रहते थे। एक बार आप ने अपने एक सेवक से पूछा- फ्इस समय दिन है या रात?य् सेवक बाबा जी के इस प्रश्न से आश्चर्य चकित रह गया व उसने इस प्रकार पूछे जाने के कारण को समझना चाहा। बाबा जी ने अपने मुबारक मुख से कहा, फ्जिस प्रकार सूर्य के सामने अँधेरा नहीं होता, उसी प्रकार प्रकाशमान् परमज्योति में लीन प्रभु-रूप ज्योति के सामने सहड्डों सूर्य-चन्द्रमा का प्रकाश भी तुच्छ रह जाता है। सूर्य का यह प्रकाश अपना नहीं है। यह दैवी प्रकाश की एक किरण है। सत्पुरुष इस दैवी प्रकाश के साथ सदा जुड़े रहते हैं। चमकते हुए सांसारिक चन्द्रमा और सूर्य अज्ञानता के अंधकार व माया की परछाई को मिटा नहीं सकते, परन्तु पूर्ण पुरुषों के एक दृष्टिपात से ही इसका लोप हो जाता है।य् बाबा हरनाम सिंह जी महाराज इसी प्रकार की सर्वोच्च आत्मा थे जिन को प्रभु ने मनुष्यता के हित के लिए इस पृथ्वी पर भेजा था।